Hadappa sabhyta ka vistar | हड़प्पा/सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार | Expansion of indus valley civilization in hindi

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Hadappa sabhyta ka vistar- सिन्धु सभ्यता भारत की प्राचीनतम नगरीय सभ्यता है। उसका सम्बन्ध कास्य काल सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) का उदय सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदी घाटियों में हुआ। इस सभ्यता के प्रकाश में आने के पूर्व पाश्चात्य विद्वानों की धारणा थी कि भारत में मिस्र, मेसोपोटामिया की भांति किसी नगरीय सभ्यता का उदय ही नहीं हआ ; किन्तु बीसवीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध में सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) के प्रकाश में आने के बाद उक्त विचारधारा का स्वत: खण्डन हो गया।

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार


सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) के प्रथम पुरास्थल हड़प्पा के विषय में सर्वप्रथम ज्ञान 1826 ई में चार्ल्स मैन्सन को हुआ। उन्होंने हड़प्पा नामक गाँव (सम्प्रति पाकिस्तान में स्थित) का दौरा किया और वहाँ उन्होंने पुरानी बस्ती के अवशेष, दीवालों और बुर्जों को देखा। उन्होंने नगर को सिकन्दर का समकालीन माना।

 उनके इस विवरण की ओर विद्वानों ने ध्यान नहीं दिया।
सन 1853 ई० में सर अलक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा के ऊँचे टीले को देखा। उन्हें स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह टीला हजार वर्ष पुराना है और शासक के अत्याचार से नगर नष्ट हो गया। कनिंघम को भी उस समय इस टीले का महत्त्व ज्ञात न हो सका। उन्होंने स्थानीय लोगों की बातों में सत्यता ढूँढ़ने का प्रयास किया।

सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित अन्य लेख:

● हड़प्पा सभ्यता (एक दृष्टि में सम्पूर्ण)

● हड़प्पा सभ्यता का उद्भव/उत्पत्ति

● हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएँ (विस्तृत जानकारी)

● हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल|sites of Indus valley civilization| (Part 1)  चन्हूदड़ो, सुतकागेंडोर, बालाकोट, अल्लाहदीनो, कोटदीजी, माण्डा, बनावली

● हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल|sites of indus valley/harappan civilization (Part 2)| रोपड़, भगवानपुरा, कालीबंगन, लोथल, सुरकोटदा, धौलावीरा, देसलपुर, कुंतासी, रोजदी, दैमाबाद, हुलास, आलमगीरपुर, माण्डा, सिनौली

● सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरास्थल(Sites of indus valley civilization)Part 3 |हड़प्पा(Harappa), मोहनजोदड़ो(Mohenjodaro)|हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल

 कालान्तर में सन् 1856 ई० में ब्रिटिश शासन द्वारा कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना लागू की गई। रेल लाइन बिछाने के लिए गिट्टियों की आवश्यकता थी जिसके लिए अधिकारियों ने पुराने टीलों से ईंट निकालने का निर्णय लिया। जॉन विलियम ब्रन्टन ने हड़प्पा टीले से ईंट निकालने का काम शुरू करवाया। ईंट निकालते समय उन्हें कुछ पुरावशेष प्राप्त हुए, जिसे उन्होंने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के प्रमुख अलेक्जेण्डर कनिंघम के पास भेजा।
कनिंघम ने हड़प्पा टीले का सर्वेक्षण सन् 1856 ई० में पुन: किया, किन्तु सभ्यता के महत्त्व से अनभिज्ञ रहे।
कालान्तर में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देशानुसार सन् 1921 ई० में दयाराम साहनी ने हड़प्पा टीले का पुन: अन्वेषण किया, जिसमें उन्हें प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए।
 सन् 1922 ई० में राखालदास बनर्जी ने सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित मोहनजोदड़ो नामक पुरास्थल की खोज की। तत्पश्चात् दयाराम साहनी और राखालदास बनर्जी ने अपनी-अपनी रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंपी जिससे पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों का ध्यान इस अज्ञातनामा सभ्यता की ओर आकर्षित हुआ।
 परिणामस्वरूप हड़प्पा और मोहनजोदड़ो पुरास्थलों का उत्खनन कार्य संपादित किया गया।

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार (Hadappa sabhyta ka vistar)

बीसवीं शती के द्वितीय दशक तक पाश्चात्य विद्वानों की यह धारणा थी कि सिकन्दर के आक्रमण (ई. पू. 326) के पूर्व भारत में कोई सभ्यता ही नहीं थीं। परन्तु इस शती के तृतीय दशक में इस भ्रामक धारणा का निराकरण हआ जबकि दो प्रसिद्ध परातत्वशास्त्रियों-दयाराम साहनी तथा राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा (पंजाब के मान्टगोमरी जिले में स्थित) तथा मोहनजोदड़ो (सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित) के पाचीन स्थलों से पुरावस्तुयें प्राप्त करके यह सिद्ध कर दिया कि परस्पर 640 किलोमीटर की दूरी पर बसे हुए ये दोनों ही नगर कभी एक ही सभ्यता के दो केन्द्र थे।

 पिगट महोदय ने इन्हें “एक विस्तृत साम्राज्य की जड़वा राजधानियाँ” कहा है।
विद्वानों का यह विश्वास है कि हड़प्पा-घग्गर-मोहनजोदड़ो yt (Harappa-Ghaggar-Mohenjodaro Axis) सिन्धु सभ्यता का केन्द्र-बिन्दु/केन्द्र-स्थल (Heartland) रहा होगा। सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) की अधिकांश बस्तियाँ इसी क्षेत्र में पड़ती है।
 साहनी तथा बनर्जी के पश्चात् सर जॉन मार्शल तथा माधव स्वरूप वत्स ने क्रमशः मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में कई वर्षों तक उत्खनन करके महत्वपूर्ण सामग्रियाँ प्राप्त किया।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों-के0 एन0 दीक्षित, अर्नेस्ट मैके, आरेल स्टीन, ए घोष, जे0 पी0 जोशी आदि ने भी इस सभ्यता की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस पूरी सभ्यता को ‘सिन्धु नदी-घाटी की सभ्यता’ अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर ‘हड़प्पा की सभ्यता’ कहा जाता है।
कुछ विद्वानों का विचार है कि चूंकि इस हड़प्पा सभ्यता का विस्तार सिन्धु घाटी के बाहर बहुत बड़े क्षेत्र में था, अतः इसका नामकरण सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) के प्रथम स्थल के नाम पर ‘हड़प्पा सभ्यता कहना अधिक उपयुक्त होगा। इस सभ्यता के प्रकाश में आने से भारतीय इतिहास को प्राचीनता बढ़ जाती है और अब इस विश्वास के लिये कारण है कि भारत देश भी मेसोपोटामिया तथा मिस्र की सभ्यताओं के साथ ही अपनी एक स्वतंत्र सभ्यता का विकास कर रहा था जो उनकी समकालीन होते हुए भी अनेक अर्थों में उनसे बढ़कर थी।

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार (Expansion of indus valley civilization) उत्तर में माण्डा (जम्मू) से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (उत्तरी महाराष्ट्र) तक और पूर्व में आलमगीरपुर (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) से लेकर पश्चिम में सुत्कागेंडोर (बलुचिस्तान) तक है। दूसरे शब्दों में, सिन्धु सभ्यता की उत्तरी सीमा मांडा, दक्षिणी सीमा दैमाबाद, पूर्वी सीमा आलमगीरपुर एवं पश्चिमी सीमा सुत्कागेंडोर है। यह समूचा क्षेत्र त्रिभुज के आकार का है जिसका शीर्ष पश्चिम में तथा आधार पूर्व में उत्तर-दक्षिण की दिशा में है।

हडप्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किमी. है। अनुमानतः हड़प्पा सभ्यता का विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 1100 किमी. तथा पूर्व से पश्चिम तक 1550 किमी. है।

Hadappa sabhyta ka vistar map

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र

क्षेत्रफल की दृष्टि से हडप्पा सभ्यता के समकालीन सभ्यताओं—मेसोपोटामिया सभ्यता (इराक), मिस्र की सभ्यता (मिस्र) एवं चीन की सभ्यता (चीन) में सबसे बड़ी थी। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया की सभ्यता का विकास दजला (Tigris) व फरात (Euphrates) नदी घाटी में, मिस्र की सभ्यता का विकास नील (नील) नदी घाटी में एवं चीन की सभ्यता का विकास ह्वांग-हो/येलो (Hwang- Ho/Yellow) नदी घाटी में हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार क्षेत्रफल मेसोपोटामिया एवं मिस्र की सभ्यता के संयुक्त क्षेत्रफल से 12 गुना बड़ा था।

सैन्धव सभ्यता 2500 ई0 पू0 के आस-पास अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में प्रकट होती है।

बीसवीं शताब्दी ईस्वी के पूर्वाद्ध में जब हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का उत्खनन हुआ उस समय तक पुरातत्वविद् इसके विस्तृत स्वरूप से अनभिज्ञ थे।
सन 1921-22 से आज तक होने वाली पुरातात्विक खोजों से सैंधव सभ्यता का दायरा काफी बढ़ गया है।
अब हम यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि जिसे हम सैंधव सभ्यता के नाम से जानते हैं , वह एक ऐसी सभ्यता की जो विस्तार की दृष्टि से मेसोपोटामिया और मिस्र आदि की सभ्यताओं की तुलना में निश्चित रूप से अत्यंत विस्तृत थी।
कालांतर में पुरातत्वविदो के अथक प्रयास और अनुसंधान ने इस सभ्यता को विश्व की सर्वाधिक विस्तृत सभ्यता होने का गौरव प्रदान किया।
पाकिस्तान और भारत ईन दोनों देशों में हड़प्पा सभ्यता का विस्तार (Hadappa sabhyta ka vistar) मिलता है।
अफगानिस्तान में भी सिंधु सभ्यता से संबंधित मुण्डीगाक तथा शोर्तुगाई नामक दो पुरास्थल खोजे गए हैं।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि अफगानिस्तान के ये 2 पुरास्थल हड़प्पा सभ्यता के विस्तार क्षेत्र में नहीं आते हैं।

Extent of harappan/indus valley civilization ( हड़प्पा/सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार ):-

अफगानिस्तान के पुरास्थल:-

अफगानिस्तान में सोर्तुगई और मुंडी गाक पुरास्थलों से भी सैन्धव सभ्यता के पुरावशेष प्राप्त हुए है। यहाँ से हड़प्पाई पुरावशेषों में मृण्मूर्ति , मृदभांड , वैदूर्यमणि आदि प्राप्त हुए हैं। किन्तु पुरातत्वविद् अफगानिस्तान को सिन्धु सभ्यता के प्रसार क्षेत्र (Expansion of indus valley civilization) में परिगणित नहीं करते हैं। यह पुरास्थल संभवत: सिन्धु-सभ्यता के बाह्य केंद्र का प्रतिनिधित्व करते थे। अथवा अनुमान किया जाता है कि ये हड़प्पा सभ्यता के व्यापारिक पड़ाव या उपनिवेश थे।

पाकिस्तान के प्रमुख पुरास्थल :

पाकिस्तान के बलूचिस्तान पंजाब एवं सिंध प्रांतों में इस विशाल हड़प्पा सभ्यता के कई पुरास्थलों की खोज की गयी है।

बलूचिस्तान के हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल:-

उत्तरी बलूचिस्तान में स्थित क्वेटा तथा जॉब की घाटियों में सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित पुरास्थल स्थित नहीं है।
दक्षिण बलूचिस्तान में हड़प्पा सभ्यता के कई पुरास्थल स्थित हैं।
◆ ईरान की सीमा से पूर्व की ओर लगभग 40 किलोमीटर और अरब सागर से उत्तर की ओर लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर दश्त नदी के किनारे पर स्थित सुतकागेंडोर उल्लेखनीय है।
इस पुरास्थल की खोज 1927 में ऑरेल स्ट्रेन ने की थी । सन 1962 ई. में अमेरिका के पुरातत्वविद् जॉर्ज एफ. डेल्स ने यहाँ पर उत्खनन कराया, जिससे दुर्ग तथा नगर के प्रमाण मिले हैं।


◆सुत्कागेंडोर से लगभग 130 किलोमीटर पूर्व-दक्षिण में शादीकौर नदी के तट पर स्थित सुत्का-कोह(Sutka koh) डेल्स द्वारा खोजा गया। एक अन्य महत्वपूर्ण पुरास्थल है।
◆ बालाकोट( बिंदार नदी के मुहाने पर) तथा ऑरेल स्टाइन द्वारा खोजा गया डाबरकोट नामक पुरास्थल भी बलूचिस्तान के इसी क्षेत्र में पड़ता है।
◆ उपरोक्त पुरास्थलों के अतिरिक्त मेहरगढ़, किली गुल मुहम्मद , राणा घुण्डई , गुमला , निंदोबारी , अंजीरा , नौशारो , शाही टुम्प आदि पुरास्थल भी बलूचिस्तान के क्षेत्र में ही आते हैं।

★पुरातत्वविदों के अनुसार सुत्कागेंडोर , सुत्का कोह और बालाकोट सिंधु सभ्यता के समय समुद्र के किनारे स्थित रहे होंगे जो अब समुद्र से दूर हैं। क्योंकि प्रागैतिहासिक काल में उस क्षेत्र का समुद्र स्थल की ओर वर्तमान की अपेक्षा बढ़ा हुआ था।
★ डाबरकोट पुरास्थल अफगानिस्तान जाने वाले मार्ग पर स्थित है

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल:-

पाकिस्तान के पंजाब इलाके में प्रमुख पुरास्थल हड़प्पा है। हड़प्पा के अलावा पुरास्थलों में इस्माइलखान , जलीलपुर , रहमान ढेरी , चक पुरबाने स्याल , सराय खोला , संघान वाला ,  देरावर , गनेरीवाल/गनवेरी वाल , आदि प्रमुख पूरा स्थल है।
इन पुरास्थलों से सैंधव सभ्यता के प्राचीन अवशेष मिले हैं।

पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल:-

पाकिस्तान के सिंध प्रांत के प्रमुख पुरास्थलों में मोहनजोदड़ो , चन्हूदड़ो , जुडेरजोदड़ो , आमरी , कोटदीजी , रहमान ढेरी , सुकुर , अल्हादीनो/अल्लाहदीनों , अलीमुराद , झूकर , झांगर आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
उपरोक्त पाकिस्तान के प्रान्तों से प्राप्त पुरास्थलों के अलावा हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक पुरास्थल भारतीय गणराज्य से प्राप्त हुए हैं।

हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल
Sites of Indus valley civilization

भारतीय गणराज्य से प्राप्त हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल:-

भारतीय गणराज्य के पंजाब जम्मू-कश्मीर , हरियाणा , उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्यों से नगरों के पुरास्थल प्राप्त हुए हैं।
 इनमें सभी पुरा स्थलों में साम्यता परिलक्षित होती है। तथा वे सभी तत्व विद्यमान हैं जिनसे यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये समस्त नगरीय पुरास्थल न केवल हड़प्पा कालीन हैं , अपितु हड़प्पा सभ्यता के ही पुरास्थल है।

जम्मू कश्मीर के पुरास्थल:-

जम्मू कश्मीर क्षेत्र में चेनाब नदी घाटी के दाहिने तट पर स्थित मांडा पुरास्थल सैंधव सभ्यता के परवर्ती चरण /उत्तरकालीन चरण से संबंधित है।

पंजाब के हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल:-

पंजाब में रूपनगर(रोपड़),कोटला निहंग खान , चक 86 , बाडा , संघोल(फतेहगढ़ साहिब) , ढेर माजरा , आदि पुरास्थलों से सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बद्ध पुरावशेष प्राप्त हुए हैं।

हरियाणा प्रदेश के पुरास्थल:-

हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में सैंधव सभ्यता के अनेक पुरास्थल खोज निकाले गए हैं।
मिताथल(जिला;भिवानी) , सिसवल , बणावली , राखीगढ़ी(जिला;हिसार) , कुणाल  बालू ,  भगवानपुरा(कुरुक्षेत्र जिला), आदि हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थलों का उत्खनन किया जा चुका है।

राजस्थान के हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल:-

उत्तरी राजस्थान की सरस्वती (वर्तमान घग्घर) और इसकी सहायक दृषद्वती (वर्तमान चौतंग) की घाटियों के क्षेत्रों का सन् 1950-53 में अमलानन्द घोष ने व्यापक पैमाने पर अन्वेषण करके लगभग दो दर्जन पुरास्थलों की खोज करने में सफलता प्राप्त किया। इनमें गंगानगर(हनुमानगढ़) जिले में स्थित कालीबंगा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कालीबंगा नामक पुरास्थल पर भी पश्चिम में गढ़ी और पूर्व में नगर के दो टीले, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की ही भाँति विद्यमान हैं। बृजवासी लाल और बालकृष्ण थापर के निर्देशन में किये गए उत्खनन के फलस्वरूप प्राक्-हड़प्पा (Pre-Harappan) और हड़प्पा सभ्यता के पुरावशेष खोज निकाले गए हैं।
इसके अतिरिक्त सीकर जिले में स्थित गणेश्वर;उदयपुर जिले में स्थित बालाथल पुरास्थल भी हड़प्पा संस्कृति से संबंधित है।

गुजरात प्रदेश के प्रमुख पुरास्थल:-

गुजरात प्रदेश का भी सैंधव पुरास्थलों की खोज के लिए व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण किया गया है जिसके परिणामस्वरूप 40 से अधिक पुरास्थलों पर सैंधव पुरावशेष एवं पुरानिधियाँ मिली हैं। प्रमुख पुरास्थलों में रंगपुर(अहमदाबाद), लोथल(अहमदाबाद), पाडरी, प्रभास पट्टन(जूनागढ़), रोझ, देसलपुर(कच्छ), कुन्तासी(राजकोट), शिकारपुर नगवाडा, मेघम, तेल, भगतराव(भरुच), मालवण(सूरत) , सुरकोटदा(कच्छ) और धौलावीरा का उल्लेख किया जा सकता है। रंगपुर, लोथल, कुन्तासी, सुरकोटदा, रोजदी(राजकोट) एवं नगवाडा का अपेक्षाकृत व्यापक पैमाने पर उत्खनन किया गया है। कच्छ जिले में स्थित धौलावीरा पुरास्थल भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
NOTE:-(1) हाल ही में अहमदाबाद (गुजरात) से 114 किमी. की दूरी पर स्थित खर्वी(kharvi) नामक स्थान से हड़प्पा संस्कृति के मृदभांड तथा ताम्र आभूषण सुरक्षित अवस्था मे प्राप्त किये गए हैं।।
……टाइम्स ऑफ इंडिया, लखनऊ में                20 अगस्त,1988 को पृष्ठ 6 पर प्रकाशित।
(2)हाल ही में चेनके के राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के वैज्ञानिकों ने के तट से समुद्र गुजरात 30 किलोमीटर दूर खंभात की खाड़ी में समुद्री जल प्रदूषण के स्तर की जाँच के दौरान समुद्र में 40 मीटर नीचे दबे हुए एक विशाल नागर सभ्यता के अवशेष खोज निकाले है। इस नगर तथा सैन्धव सभ्यता के स्थलों में अद्भुत समानता है। इसके अवशेष नौ किलोमीटर के दायरे में फैले पाये गये हैं। एक जलकुण्ड में उतरती हुई सीढ़ियां, 200x 45 मीटर आकार का आयताकार चबूतरा, मिट्टी की मोटी दीवारों से बना 183 मीटर लम्बा अन्नागार आदि सैन्धव अवशेषों जैसे हैं। विशाल ढांचों से कुछ दूरी पर आयताकार ढांचे हैं जो मकानों के अवशेष प्रतीत होते हैं। इनमें नालियां तथा मिट्टी की सड़के भी बनी हुई है। शिल्प आकृतियों में पत्थर के तराशे औजार, गहने तथा आकृतियां, टूटे-फूटे मृद्भाण्ड, जवाहरात, हाथी दांत और मनुष्य के जबड़े तथा दन्त पुरावशेष सम्मिलित हैं।
 यहां से प्राप्त लकड़ी के एक कुन्दे का परीक्षण बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पेलियोबाटनी, लखनऊ तथा नेशनल जिओफिजीकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने किया तथा इसकी तिथि क्रमशः ई0 पू0 5500 तथा 7500 निर्धारित किया। इस क्रान्तिकारी खोज ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व की प्राचीनतम नागर सभ्यता भारतीय भूभाग मे ही फली-फूली तथा सभ्यता के प्राचीनतम ज्ञात निशान 2000 वर्ष पीछे जा सकते हैं। यदि खम्भात से प्राप्त पुरावशेषों की जाँच गहनता से की जाय तो यह एक रोमांचक खोज बन जायेगी।

उत्तर प्रदेश के पुरास्थल:-

उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भाग भी सिन्धु सभ्यता के प्रसार क्षेत्र (Expansion of indus valley civilization) में आता है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में आलगीरपुर पुरास्थल सिन्धु सभ्यता के पूर्वी सीमा का निर्धारण करता है। इसके अलावा बागपत जिले में स्थित सनौली , सहारनपुर जिले के हुलास और बड़ा गाँव पुरास्थल सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) के परवर्ती चरण से सम्बन्धित माने गये हैं।
NOTE:- दकन कालेज पुना के प्रो० वी0 एन0 मित्र तथा उमटीच्यट ऑफ राजस्थान स्टडीज के संयुक्त तत्वावधान में किये गये उत्खनन के फलस्वरूप उदयपुर (राजस्थान) के समीप स्थित बालीथल गाँव से सैन्धव संस्कृति के अवशेष मिले हैं। इनमें पावाण निर्मित भवनों के खण्डहर महत्वपूर्ण हैं। एक विशाल भवन में पत्थर मिले हए छ कमरे हैं जो यहाँ के निवासियों की सम्पन्नता को सूचित करते हैं। पत्थर की ओखली अनाज रखने की खत्तियां (Silos) भी मिलती है। यही से प्राप्त ईंटें हड़प्पा बस्तियों में प्रयुक्त ईंटों के समान है।
प्रो० मिश्र के अनुसार सभ्यता के यतन काल (1900 ई0 पू के लगभग) यहाँ के निवासियों ने पशुचारी ग्रामीण जीवन बीताना प्रारम्भ कर दिया था तथा वे गुजरात से इस स्थान पर आये होंगे।
-अवर लोडर, (इला0), 11 मई 95 पृष्ठ-5 पर प्रकाशित सूचना। 3 इण्डिया टुडे, 13 फरवरी, 2002 में प्रकाशित विस्तृत रिपोर्ट।

महाराष्ट्र से प्राप्त पुरास्थल:-

महाराष्ट्र प्रदेश के दायमाबाद नामक पुरास्थल के उत्खनन से मिट्टी के बर्तन के एक टुकड़े पर चिरपरिचित सैंधव लिपि के तीन चिन्ह अंकित मिले हैं। सिंधु लिपि अंकित मिट्टी की दो मुहरें मिली है। कांस्य धातु के खिलौने मिले हैं। लेकिन जब तक पर्याप्त एवं यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल जाते हैं, सैंधव सभ्यता का विस्तार महाराष्ट्र तक नहीं माना जा सकता है।
विस्तृत जानकारी के अभाव के कारण पुरातत्वविद् इस पुरास्थल को सैंधव सभ्यता से जोड़ने में संदेह व्यक्त करते हैं।
■ तमिलनाडु के नागपट्टिनम् जिले के मयिलथुरै नगर के पास सेम्बियन केन्डियूर गाँव से दो पाषाण निर्मित हस्त कुल्हाडे मिले हैं जिनमें एक के ऊपर सैन्धव लिपि के चार अक्षर अंकित हैं। एरावथम् महादेव के अनुसार तमिल मूल का यह उपकरण ई०पू० 2000-1500 के बीच का है तथा सुदूर दक्षिण में सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार (Expansion of indus valley civilization) की सूचना देता है।

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विश्व की सभ्यताएं की पोस्ट्स

● पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कब हुई? भाग -1

 पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति व उसके क्रमिक विकास क्रम (भाग-2)

● मिस्र की सभ्यता की सम्पूर्ण जानकारी 

● सुमेरिया की सभ्यता की महत्वपूर्ण जानकारियां

निष्कर्ष(Conclusion):-

इस प्रकार हम देखते हैं कि सिंधु सभ्यता का प्रसार क्षेत्र अफगानिस्तान , पाकिस्तान और भारत में पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, गंगा यमुना के दोआब क्षेत्र , पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान और गुजरात तक मिलता है।
अब तक इस सभ्यता (indus valley civilization) के लगभग 2000 से 2500 पुरास्थलों की खोज व उत्खनन किया जा चुका है।
इस सभ्यता की उत्तरी सीमा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित रहमान ढेरी तथा दक्षिणी सीमा गुजरात प्रान्त में स्थित भोगत्रार(भागवतराव) है।
इसी प्रकार इसकी पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित आलमगीरपुर तथा सबसे पश्चिमी सीमा बलूचिस्तान का सुतकागेंडोर पुरास्थल है।
इस सभ्यता (indus valley civilization) के सबसे पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर से पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर की दूरी लगभग 1,600 किमी है तथा उत्तर में स्थित रहमानढेरी से दक्षिण में स्थित भगतराव की दूरी लगभग 1,400 किमी है।
इस सभ्यता का अब तक ज्ञात क्षेत्रफल 12,99,600 से अधिक है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सभ्यता मिस्र तथा मेसापोटामिया की अपेक्षा कहीं अधिक विस्तृत थी।
समकालीन विश्व की कोई अन्य सभ्यता सिन्धु सभ्यता के समान विस्तृत नहीं थी। इसके सभी स्थलों से प्राप्त तत्वों में केवल समता है वरन् एकरूपता भी है। ये सभी ‘नगरीय एवं कांस्ययुगीन सभ्यता’ का बोध कराते हैं। नगर-योजना, मृदभाण्डकला, भार और माप की प्रणाली तथा अन्य अनेक बातों में अद्भुत समानता दृष्टिगोचर होती है।

(Expansion of indus valley civilization) | (सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार ) (Hadappa sabhyta ka vistar)

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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