भारतीय संस्कृति | Characteristics Of Indian Culture | भारतीय संस्कृति की विशेषताएं | Bhartiya Sanskriti ki Visheshtayen

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 भारतीय संस्कृति से तात्पर्य (Meaning Of Indian Culture)


मुख्यतः भारतीय संस्कृति के विशिष्ट तत्वों को जानने से पूर्व संस्कृति क्या है? यह भी जानना अत्यन्त जरूरी है। सामान्यतः संस्कृति ऐसे तत्वों की समष्टि है जिनसे मानव जीवन नियन्त्रित एवं व्यवस्थित होता रहता है। वह ऐसा मानसिक दृष्टिकोण है जो व्यक्ति जाति अथवा राष्ट्र को समुन्नत एवं परिष्कृत करने का मार्गदर्शन करता है। 

संस्कृति का अध्ययन किसी भी व्यक्ति के अपने देश के प्रति स्वाभिमान एवं गौरव की भावनाओं को उद्दीप्त करने में समर्थ है।

भारतीय संस्कृति की विशेषताएं

☛ व्युत्पत्ति की दृष्टि से सम उपसर्ग पूर्वक कृ धातु में क्लिन प्रत्यय लगाने पर 'संस्कृति' शब्द की उत्पत्ति होती है। सामान्यतः इसका अर्थ है भूषण भूत सम्यक् कृति, सुधरी हुई स्थिति, उत्तम कार्य, आचरण, परम्परा आदि। 

☛ परन्तु संस्कृति को इतने संकुचित अर्थ में ग्रहण नहीं किया जा सकता है। मनुष्य एक बुद्धिजीवी, प्रगतिशील, सामाजिक प्राणी है। वह अपने परिवार की, समाज की, जाति की, देश की तथा विश्व की प्रगति के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है। मन से उत्पन्न होने वाले ऐसे विचार, अनुसंधान और चेष्टाएँ एक विशिष्ट परम्परा का निर्माण करती है।

 ☛ वहीं स्थापित परम्परा संस्कृति' शब्द में अन्तर्भूत है। संस्कृति को परिभाषित करते हुए सम्पूर्णानन्द ने लिखा है- 'निरन्तर प्रगतिशील मानव जीवन प्रकृति और मानव समाज के जिन-जिन असंख्य प्रभावों व संस्कारों से संस्कारित व प्रभावित होता है, उन सब के सामूहिक पदार्थ को ही संस्कृति कहा जाता है।' 

☛ सारांशतः संस्कृति के निर्माण में अनेक तत्त्वों का योग होता है। किसी भी देश के धर्म, दर्शन, साहित्य, आचार-विचार, संस्कार तथा सामाजिक विधि विधान सम्मिलित रूप से संस्कृति की रचना में सहायक होते है।

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ (Characteristics Of Indian Culture)


भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। विश्व में अनेक संस्कृतियाँ जन्मी, पनपी और विलुप्त हो गयीं परन्तु भारतीय संस्कृति का सूर्य सदैव अपनी प्रखर रश्मियों से जग को आलोकित करता रहा। 

☛ भारत का अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण था। उसकी गरिमा के समक्ष स्वयं को सभ्यता का अग्रदूत मानने वाले यूनानी भी नतशिर हो गये थे। इस उन्नत, गौरवशाली भारत देश की शक्ति थी उसकी संस्कृति जो कतिपय ऐसे शाश्वत् मूल्यों पर आधृत थी जो सनातन थे, अष थे और चिरस्थायी थे। सहस्त्रों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने आचरण को नियन्त्रित करने के लिए जिस परम्परा का निर्माण किया वही हमारी संस्कृति है। 


भारतीय संस्कृति की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

(1) प्राचीनता-  Characteristics Of Indian Culture in Hindi 


भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता प्राचीनता अथवा पुरातनता है। भारत में सभ्यता के सर्वाधिक प्राचीन प्रागैतिहासिक अवशेष हमें पंजाब को सोन नदी की घाटी में प्राप्त होते है जिनका समय चार लाख से दो लाख ई० पू० के मध्य माना जाता है भारत की पहली विकसित संस्कृति सिन्धु नदी की घाटी की संस्कृति है जिसकी तुलना में यूनान और रोम की संस्कृतियाँ आधुनिक हैं। 

➠ भारतीय संस्कृति मिस्र और सुमेरिया की संस्कृतियों की समकालीन है। जिस समय भारतीय संस्कृति अपने उत्थान के मार्ग पर आरूढ़ हो चुकी थी उस समय विश्व के अन्य देशों में बर्बरता व्याप्त थी।


(2) चिरस्थायिता - भारतीय संस्कृति की विशेषताएं


➠ भारतीय संस्कृति चिरस्थायी है। यद्यपि उसमें समय-समय पर नये नये तत्त्वों का समावेश होता रहा है परन्तु उसकी मूल आत्मा सदैव एक रही है। भारतवासियों के आदर्श आज भी बही है जो उनके पूर्वजों के थे। दो सहस्र वर्ष बाद भी भारतीय राम और कृष्ण को अपने आदर्श महापुरुषों के रूप में स्वीकार करते हैं और उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं।

 ➠ सीता और सावित्री के आदर्श आज भी भारतीय नारियों के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते हैं। वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आज भी भारतीय धार्मिक विचारों के आधार हैं। आधुनिक भारत में अनेक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं परन्तु वे सब संस्कृत की पुत्रियाँ हैं और उनके शब्द भण्डार में संस्कृत के अनेक शब्द हैं। शिव-पूजा, शक्ति-पूजा, वृक्ष-पूजा, जलपूजा और पशु-पूजा भारत में अति प्राचीनकाल से चली आ रही है।


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(3) सहिष्णुता- Characteristics Of Indian Culture


➠ इस विशेषता के कारण भारतीय संस्कृति का महत्त्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि सभ्यता का दम्भ भरने वाले अनेक राष्ट्रों ने आधुनिक युग में भी विरोधी समाज, धर्म और वर्ग के प्रति असहिष्णु होकर अनेक अत्याचार किये हैं। 

➠ इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब जरा से मतभेद के कारण निरीह लोगों का वध किया गया। मार्क्स ओरिलियस ने ईसाई धर्म को रोमन प्रभुता के प्रतिकूल देखकर ईसाइयों का वध कराया। शार्लमेन ने शस्त्र बल पर लोगों को ईसाई धर्म में दीक्षित किया। इन सबके विपरीत भारतीय सम्राट अशोक ने दूसरे धर्म की निन्दा करना अथवा उसे बुरा कहना धार्मिक व्यसन बतलाया है।

 ➠ भारत में इस्लाम, यहूदी, पारसी और ईसाई धर्म बाहर से आये, पर यहाँ उनके साथ उदारता का व्यवहार हुआ। स्वयं भारत में हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिक्ख आदि धर्मों का उदय हुआ पर उनमें कभी भी धर्म के नाम पर रक्तपात नहीं हुआ। सभी धर्मावलम्बी यहाँ परस्पर सहिष्णुता और मैत्री के साथ रहे। सहिष्णुता की इस भावना के दर्शन हमें सर्वप्रथम ऋग्वेद में होते हैं जिसमें कहा गया है कि एक सद् विप्रा बहुधा वदन्ति अर्थात् सत् एक है किन्तु ज्ञानी लोग उसका अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं।


 (4) ग्रहणशीलता - भारतीय संस्कृति की विशेषताएं


➠ भारतीय संस्कृति ने विभिन्न परिस्थितियों में अपने आपको अनुकूल बनाये रखने के लिए बाह्य प्रभावों से कुछ तत्त्व ग्रहण कर अपने आपको सक्रिय और नूतन बनाये रखा। भारतीय दृष्टिकोण किसी भी अच्छी वस्तु को ग्रहण करने में संकीर्ण नहीं रहा है। 

➠ समय-समय पर भारत में शक, कुषाण, पहलव और हूण आदि विदेशी आक्रमणकारी आये और उन्होंने राजनीतिक प्रभुता स्थापित की लेकिन वे भारत पर सांस्कृतिक विजय प्राप्त न कर सके। वे भारतीय संस्कृति के द्वारा आत्मसात् कर लिये गये। उनकी संस्कृति भारतीय संस्कृति में घुल-मिल गयी जिसके परिणामस्वरूप भारत में अनेक बोलियाँ, भाषाएँ और जातियाँ अस्तित्व में आयीं, पर बे भारत की सांस्कृतिक एकता को कोई आघात न पहुंचा सकी।

(5) धर्मप्रधानता- Bhartiya Sanskriti ki Visheshtayen


➠ भारतीय दृष्टिकोण सदैव से ही धर्म प्रधान रहा है। उसकी समस्त राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक व्यवस्थाएँ, साहित्य, कला आदि धर्म को केन्द्र मानकर आगे बढ़े हैं। भारतीय संस्कृति ने मानव के सभी कार्यों का अन्तिम लक्ष्य धर्म-संचय निर्धारित किया है।

 ➠ सम्भवतः इसीलिए भारतवासियों ने इस लोक की अपेक्षा परलोक को अधिक महत्त्व दिया। लेकिन धर्मप्रधान होते हुये भी भारतीयों ने इस लोक में प्राप्त होने वाले सुख और कल्याण की उपेक्षा नहीं की। प्राचीन काल में भी भारतीय व्यापारियों ने धनोपार्जन हेतु लम्बी और कष्टपूर्ण दूरस्थ देशों की यात्राएँ की थीं। सम्राटों में चक्रवर्ती और दिग्विजयी होने की अभिलाषायें थीं, जिनकी पूर्ति के लिए बे सदैव तैयार रहा करते थे।


(6) महापुरुषों एवं पूज्यजनों के प्रति श्रद्धा-भाव-


➠ भारत में महापुरुषों के प्रति श्रद्धा एवं आदर का भाव सदैव विद्यमान रहा। धर्म, भक्ति, राजनीति, शौर्य एवं त्याग के लिए स्मरणीय व्यक्तियों के प्रति प्रत्येक भारतवासी के हृदय में अपार श्रद्धा-भाव आज भी विद्यमान है। भारतीय संस्कृति में पूज्यजनों के प्रति आदर भाव को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव आदि सूक्तियों से शास्त्रों में माता-पिता और गुरु के प्रति श्रद्धा प्रकट की गयी।

(7) लोक-कल्याण की भावना - भारतीय संस्कृति की विशेषताएं


➠ भारतीय संस्कृति में व्यक्तिगत सुख की अपेक्षा लोककल्याण की भावना को अधिक महत्व दिया गया। प्राचीन ऋषियों की प्रार्थनाओं में विश्व-कल्याण की कामनायें व्यक्त हुईं। स्वार्थ का त्याग करके दूसरों का उपकार करने वाला ही श्रेष्ठ पुरुष बतलाया गया है। सभी प्राणियों को मित्रवत् मानने का आदेश बेदों में दिया गया है।


(8) सर्वांगीणता- Bhartiya Sanskriti ki Visheshtayen


➠ भारतीय संस्कृति ने जीवन के सभी क्षेत्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये एक समन्वय उपस्थित किया है। वर्णाश्रम व्यवस्था के द्वारा सामाजिक समन्वय, ज्ञान, भक्ति और कर्म के द्वारा धार्मिक समन्वय और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के द्वारा सम्पूर्ण भारतीय जीवन में समन्वय उपस्थित किया है। भारतीय संस्कृति साहित्य और कला, भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद तथा सुख और दुख के समन्वय को भी प्रस्तुत करती है।

(9) विभिन्नता में एकता - भारतीय संस्कृति की विशेषताएं


 ➠ कुछ विदेशी इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृति का विवेचन करते हुये उस पर आरोप लगाया कि भारत एक देश न होकर एक महाद्वीप है। इसकी लम्बाई और चौड़ाई बहुत विस्तृत है। उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत के क्षेत्रों में भौगोलिक असमानता है- 

उत्तर में मैदान है और दक्षिण में पठार। सभी प्रकार की जलवायु यहाँ प्राप्त होती है। भारत में राजस्थान की मरुभूमि में उष्णता, हिमालय में शीतलता, दक्षिण में शुष्क पथरीले पठार तथा बंगाल और मालाबार में आर्द्र जलवायु है। कहीं वर्षा होती ही नहीं है या नाममात्र की होती है तो कहीं साल में पाँच सौ इंच से अधिक वर्षा होती है।

 यहाँ की आबादी भी विभिन्न प्रकार की है। इस देश का विशाल जनसमूह द्रविण, आर्य, ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, हूण, मंगोल तथा कोल, भील, संथाल आदि असभ्य जातियों से मिलकर बना है। इन सब जातियों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, आदत, स्वभाव आदि में हमें विभिन्नता दिखलाई पड़ती है। 

भाषाओं का तो भारत अजायबघर कहा जा सकता है। भारत में प्रचलित भाषाओं की संख्या लगभग 179 और बोलिर्यों लगभग 54 हैं। इसी प्रकार धर्म के नाम में भी भारत में विभिन्नता दिखलायी पड़ती हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध, पारसी, सिक्ख, इस्लाम और यहूदी धमों के मतावलम्बी यहाँ रहते हैं। हिन्दू धर्म भी मतों और सम्प्रदायों में बँटा हुआ है, जैसे वैष्णवमत, शैवमत, शाक्तमत, सनातन धर्म, ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज आदि। 


➠ भारत की मौलिक एकता पर यह भी आरोप लगाया जाता है कि यह देश कभी भी राजनीतिक दृष्टि से एक शासन सूत्र के अन्दर नहीं बँधा। इस देश में बैर और फूट का भाव बराबर बना रहा। जब भी किसी सम्राट को इसमें सफलता मिली कि वह सम्पूर्ण देश को एक शासन के अधीन रख सके तो उसकी यह सफलता स्थायी नहीं रही। इन्हीं विषमताओं के कारण योरोपीय विद्वानों ने भारतवर्ष को एक देश न कहकर उसे महाद्वीप की संज्ञा प्रदान की।

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