हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन | City planning of Harappan Civilization in hindi | सिंधु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था

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City planning of harappan civilization : प्रागैतिहासिक काल के परवर्ती मानवों ने भारतीय उपमहाद्वीप में जिस सभ्यता को जन्म दिया इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है यह ईसा पूर्व 3000 से 1500 अस्तित्व में थी।

इस ‘हड़प्पा सभ्यता की खोज’ और ‘सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार’ के विषय में हम पिछले लेख में बात कर चुके हैं जिसका लिंक नीचे दिया गया है आप उसे अवश्य पढ़ें। साथ ही सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के विस्तृत लेखों के लिंक भी नीचे दिए गए हैं―

 हड़प्पा सभ्यता की खोज व विस्तार (संक्षेप में पूर्ण जानकारी)

यहां हम सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन पर संक्षेप में पूर्ण चर्चा करेंगे-

हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन | city planning of harappan civilization 

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना : city planning of harappan civilization

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता थी इसकी नगर-योजना प्रणाली एवं जल निकास प्रणाली।

◆संपूर्ण नगर प्राय: दो असमान भागों में विभाजित था। पहला भाग ऊँचा एवं दुर्गीकृत था। इसमें शासक वर्ग निवास करता था। दूसरा भाग निचला एवं अनावृत था। आमतौर पर इसमें सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर एवं श्रमिक रहते थे।

◆ यद्यपि कुछ स्थलों पर एकल विभाजन (लोथल) एवं त्रिस्तरीय विभाजन (धौलावीरा) भी देखने को मिलता है।

हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन व्यवस्थित था। ये नगर आयताकार या वर्गाकार आकृति में मुख्य सड़कों तथा चौड़ी गलियों के ग्रिड पर आधारित थे।

◆ नगरों की मुख्य सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। आमतौर पर सड़कें कच्ची होती थीं। सिर्फ मोहनजोदड़ो में एक सड़क के पक्कीकरण के साक्ष्य मिले हैं।

◆ सड़कों के किनारे पानी बहने के लिए नाली की व्यवस्था थी जिसमें कूड़ा-करकट एकत्रित करने के लिए जगह-जगह मेनहोल बने थे। नालियों तथा मेनहोल पर ढक्कन रहता था।

हड़प्पा सभ्यता की भवन निर्माण योजना ―

◆ इस सभ्यता में बड़े-बड़े भवन मिले हैं जिसमें महास्नानागार, पुरोहित आवास, अन्नागार, सभा भवन आदि प्रमुख हैं।

◆ मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है जो 45 मीटर लंबा और 15 मीटर चौड़ा है। यह अन्नागार दुर्ग के भीतर स्थित है।

हड़प्पा सभ्यता के प्रत्येक भवन में कई कमरे, कुएँ, स्नानागार तथा आँगन होता था। कालीबंगा तथा रंगपुर को छोड़कर सभी नगरों में पकी हुई ईंटों का प्रयोग हुआ है।

◆ हड़प्पाई नगरों के चारों ओर प्राचीर बनाकर किलेबंदी की गई थी जिसका उद्देश्य नगर को चोर, लुटेरों एवं दस्युओं से बचाना था। सुत्कांगेडोर में एक विशाल दुर्ग एवं परकोटे से घिरे आवास स्थल का पता चला है।

◆ सिंधु घाटी के लोग आडंबर के विशेष प्रेमी नहीं थे। उन्होंने सुंदरता से अधिक उपयोगिता पर बल दिया है।

मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के भवनों में स्तंभों का कम प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं वर्गाकार स्तंभ मिलता है।

◆ भवनों का औसत आकार 30 फीट का हैं। ईंटों का आकार 4:2:1 के अनुपात में है।

मोहनजोदड़ो में गढ़ी तथा निचले नगर के बीच सिंधु नदी की एक शाखा बहती थी।

धौलावीरा तथा सुरकोटडा में भवन निर्माण में पत्थर का प्रयोग किया गया है।

◆ घरों के दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क पर न खुलकर गलियों में खुलती थीं, लेकिन लोथल इसका अपवाद है।

उपरोक्त जानकारियों के बाद आईये अब सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख उत्खनित नगरों के बारे में संक्षेप में पूरी बात कर लेते हैं। इन नगरों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी के लिए सबसे नीचे दिए गए लिंक पर जाकर विस्तारपूर्वक पढ़ें―

हड़प्पा नगर : Harappa city

◆ हड़प्पा, पाकिस्तानी पंजाब के मॉन्टगोमरी जिले (वर्तमान शाहीवाल) में रावी नदी के बायें किनारे पर स्थित है। सबसे पहले इसकी खुदाई 1921ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में की गई थी।

◆ संपूर्ण नगर दो भागों में विभाजित था। पश्चिमी भाग में दुर्ग का निर्माण किया गया था तथा पूर्वी भाग रिहायसी इलाका था।

स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे अर्द्ध-औद्योगिक नगर कहा है।

◆ यहाँ 6-6 की दो कतारों में धान्य कोठार मिले हैं जहाँ जौ एवं गेहूँ के दाने मिले हैं।

हड़प्पा का अन्नागार दुर्ग से बाहर स्थित था।

◆ यहाँ से धोती पहने एक मूर्ति प्राप्त हुई है। साथ ही एक बर्तन पर मछुआरे का चित्र, शंख का बना हुआ बैल, स्लेटी चूना पत्थर की नर्तकी की मूर्ति, तांबे की इक्कागाड़ी, कांसे का दर्पण प्राप्त हुआ है।

◆ यहाँ की मृण्मूर्तियों में पुरुष मूर्तियों की अधिकता है। यहीं सिर के बल खड़ी नग्न स्त्री का चित्र मिला है जिसके गर्भ से पौधा निकलता दिखाई देता है। इसे उर्वरता की देवी कहा जाता था।

◆ यहाँ कब्रिस्तान क्षेत्र में R-37 नामक कब्र में ताबूत मिला है।

◆ यहाँ से एक प्रसाधन केस भी मिला है। साथ ही सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें हड़प्पा से ही प्राप्त हुई हैं।

मोहनजोदड़ो (Mohenjo-Daro)

◆ सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ ‘मृतकों का टीला’ है।

◆ यह नगर 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा खोजा गया था। वर्तमान में यह स्थल पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने तट पर स्थित है।

◆ मोहनजोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र में एक सभागार, पुरोहितों का आवास, महाविद्यालय तथा महास्नानागार के साक्ष्य मिले हैं।

मोहनजोदड़ो के भवन तीन मंजिले के हो सकते थे क्योंकि यहाँ से पहली मंजिल पर जाने की सीढ़ी का साक्ष्य मिला है। नगर में प्रवेश द्वार दक्षिण एवं उत्तर की तरफ निर्मित थे। घर की छत लकड़ी से निर्मित होती थी।

◆ यहाँ 16 कमरों का बैरक मिला है जिसे पिग्गट महोदय ने कुली लाइन कहा है।

◆ साथ ही यहाँ से उस्तरे में लिपटा सूती कपड़ा, तिपहिया वस्त्र ओढ़े छड़ीयुक्त धड़, कुम्हार के 6 भट्टों के अवशेष, एक शृंगी पशु आकृति वाली मुहर, हाथी का कपाल खंड, मातृदेवी की मूर्ति, कांसे की नर्तकी की मूर्ति, सेलखड़ी के बाँट, खिलौने, नाव के चित्रयुक्त बर्तन तथा हड्डी से बनी हुई सुई प्राप्त हुई है।

◆ यहाँ के भवनों में गोल स्तंभ का पूर्ण अभाव है। सड़क को पक्की करने का साक्ष्य मिला है जो पूरी हड़प्पा सभ्यता में एक मात्र ऐसा उदाहरण है।

◆ इसके अलावा, यहाँ मुद्रा पर पशुपति शिव की मूर्ति, योगी की मूर्ति, घोड़े के दांत, सीपी की बनी हुई पटरी प्राप्त हुई है।

◆ मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक संख्या में मुहरें प्राप्त हुई हैं। यहाँ की अधिकांश जातियाँ भूमध्यसागरीय प्रतीत होती हैं।

लोथल (Lothal city) :

◆ गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे खम्भात की खाड़ी के निकट स्थित इस आयताकार स्थल की खोज डॉ. रंगनाथ राव ने 1957 ई. में की थी।

◆ हड़प्पा सभ्यता का यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ गोदीवाड़ा यानी डॉकयार्क मिला है।

◆ लोथल शहर का विभाजन दुर्ग तथा निचले शहर में नहीं है। यहाँ से वृत्ताकार तथा चौकोर अग्नि वेदिका के साक्ष्य मिले हैं। वर्तन के टुकड़ों पर लगे हुए चावल के दाने मिले हैं, साथ ही बाजरे की भी प्राप्ति हुई है।

◆ यहाँ से तीन युग्मित समाधियाँ मिली हैं। भवन का द्वार मुख्य सड़क की ओर खुलने का साक्ष्य मिला है।

◆ साथ ही यहाँ से अनाज पीसने की चक्की, मनका बनाने का कारखाना, हाथी दांत, वस्त्र रंगाई के कुंड, मिट्टी की दो पशु आकृतियाँ, गोरिल्ला, बारहसिंघा, बत्तख, सांप के अंकन वाली मुहरें एवं दो मुँहे राक्षस के अंकन वाली फारस की मुद्रा भी प्राप्त हुई है।

◆ इसके अलावा, यहाँ से एक खिलौना ऐसा मिला है जिसमें एक व्यक्ति दो पहियों पर खड़ा दिखाया गया है।

कालीबंगा :

◆ कालीबंगा वर्तमान राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले में लुप्त हो चुकी घग्घर नदी के बायें तट पर स्थित है। यहाँ दोनों खंड सुरक्षा दीवारों से घिरे थे।

◆ कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है काले रंग की चूड़ियाँ । यहाँ से प्राक्-हड़प्पा तथा विकसित हड़प्पा दोनों चरणों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

◆ इसका उत्खनन 1953 में अमलानंद घोष तथा 1960 में बी.बी. लाल एवं बी. के. थापर के नेतृत्व में हुआ।

◆ कालीबंगा के दुर्ग का आकार वर्गाकार है। यहाँ ईंट के चबूतरे पर 7 हवनकुंड के साक्ष्य मिले हैं। नाली के रूप में लकड़ी का पाइप मिला है।

◆ यहाँ से जुते हुए खेत, फर्श को अलंकृत ईंटों से पक्की करने, कांच व मिट्टी की चूड़ियाँ, बेलनाकार मुहरें, प्रतीकात्मक समाधियों, व्याघ्र के अंकन वाली मुहर, मृदभाण्ड पर सींग वाले देवता के साक्ष्य मिले हैं।

◆ कालीबंगा के भवन कच्ची ईंटों के बने थे इनमें एक पल्ले वाले किवाड़ लगाए जाते थे।

◆ साथ ही यहाँ से एक बालक के शव का कपाल खंड मिला है जिसमें 6 छेद हैं। यह शल्य चिकित्सा का प्रमाण है।

चन्हुदड़ो :

1931 में एन. जी. मजूमदार के प्रयास से इस स्थल की खोज हुई। 1935 में मैके ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। वर्तमान में यह सिंध में मोहनजोदड़ो से 130 किमी. दक्षिण-पूर्व में स्थित है।

◆ यहाँ से प्राक् हड़प्पन, हड़प्पन और उत्तर हड़प्पन संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं।

◆ यहाँ से दो बड़े जार मिले हैं जिन पर प्रतिच्छेदी वृत्त निर्मित हैं।

◆ चन्हुदड़ो एकमात्र पुरास्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं।

◆ इसके अलावा, यहाँ से मनके बनाने का कारखाना, लिपिस्टिक एवं इत्र रखने का केस, एक मुद्रा पर तीन घड़ियाल एवं दो मछलियों का अंकन, चार पहियों वाली गाड़ी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

धौलावीरा :

◆ यह गुजरात के कच्छ के रण में स्थित है। इसकी खोज 1967-68 में जगपति जोशी द्वारा की गई थी तथा 1990-91 के दौरान व्यापक उत्खनन किया गया।

◆ धौलावीरा का अर्थ होता है सफेद कुआँ। यह आयताकार नगर तीन भागों में विभाजित था दुर्ग, मध्य तथा निचला नगर। तीनों भाग दुर्गीकृत थे।

◆ यहाँ का जल प्रबंधन विशिष्ट है जिसमें जल संग्रहण हेतु 16 से अधिक जलाशयों का निर्माण किया गया है।

◆ यहाँ से हड़प्पा लिपि के 10 बड़े चिन्हों से निर्मित शिलालेख भी प्राप्त हुआ है।

◆  इसके अलावा यहाँ से एक शृंगी पशु के अंकन वाली मुहर, गुलाबी रंग के मृदभाण्ड और स्टेडियम के साक्ष्य मिले हैं।

◆ यहाँ से मनुष्य तथा पशुओं की मूर्तियाँ नहीं मिली हैं।

बनावली :

◆ यह हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित है। इसकी खोज 1973 में आर. एस. बिष्ट ने की थी।

◆ यहाँ से प्राक् हड़प्पा तथा विकसित हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।

◆ यहाँ से अच्छे किस्म का जौ, तांबे का एक वाणाग्र, हल की आकृति का खिलौना, तांबे की कुल्हाड़ी के साक्ष्य मिलते हैं।

◆ यहाँ की सार्वजनिक व्यवस्था में जल निकास प्रणाली का अभाव था।

बनावली की सड़कें समकोण पर न काटकर एक-दूसरे के समानांतर हैं।

सुरकोटदा :

◆ यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है। 1964 में जे.पी. जोशी द्वारा यहाँ उत्खनन कार्य करवाया गया। यहाँ से प्राक् हड़प्पा संस्कृति का साक्ष्य नहीं मिला है।

◆ यह नगर दो भागों-गढ़ी तथा आवासीय क्षेत्र में विभाजित था। दुर्ग के बाहर तथा अंदर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साक्ष्य मिले हैं।

◆ यहाँ से घोड़े की अस्थियाँ प्राप्त हुई हैं तथा एक अनोखे कब्रगाह की भी प्राप्ति हुई है।

इस प्रकार हमने यहां हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन (City planning of harappan civilization) को समझा। हड़प्पा सभ्यता की पूर्ण जानकारी के लिए इस लेख से संलग्न हड़प्पा सभ्यता के अन्य लेखों को भी अच्छी तरह पढ़कर आत्मसात कर लें।

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धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र० 
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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