भारतीय संस्कृति के अध्ययन के स्रोत | Sources of indian culture in hindi | Bharteey sanskriti ke adhyayan srot

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भारतीय संस्कृति (Indian Culture) विश्व की अनेक संस्कृतियों में सबसे उत्तम संस्कृति है। इस संस्कृति की अनेक विशिष्टताएं इसे अन्य संस्कृतियों से भिन्न और उत्कृष्ट बनाती है।

भरतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में हम अलग से चर्चा करेंगे। यहां हम भारतीय संस्कृति के अध्ययन के विविध स्रोतों (Sources of indian culture in hindi) के विषय में जानने का प्रयास करेंगे।

Sources of indian culture in hindi

भारतीय संस्कृति के अध्ययन के स्रोत : Sources of indian culture in hindi

भारतीय संस्कृति के अध्ययन के स्रोत भी प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के स्रोतों से बहुत समान हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास न केवल एक दूसरे से घनिष्टया संबंधित हैं बल्कि वे एक ही दिशा में विकास की अवस्था को प्राप्त हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो भारतीय इतिहास जिन जिन स्रोतों से मुखरित होता है उन्ही स्रोतों के माध्यम से हम अपनी संस्कृति को भी जान पाते हैं।

भारतीय संस्कृति सदा से एक सीधी रेखा में विकासशील और परिवर्तनीय रही है अतः इसके विकास को ठीक ढंग से समझने के लिए तथा अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति की गहनता से अध्ययन के लिए हमे कुछ स्रोतों की सहायता लेनी पड़ती है।

भारतीय संस्कृति के अध्ययन के स्रोतों का विभाजन :

भारतीय संस्कृति के अध्ययन हेतु उपयोगी स्रोतों को मुख्यतः 2 भागों में बांटा जा सकता है-

1. साहित्यिक स्रोत 

2. पुरातात्विक स्रोत 

● भारतीय संस्कृति की यदि बात करें तो यह संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। पाषाणकालीन संस्कृतियां व धातुकालीन संस्कृतियां ही भारतीय संस्कृति की नींव का पत्थर हैं। भारतीय सांस्कृति को “विविधता में एकता की संस्कृति” कहा जाता है।

भारतीय संस्कृति के साहित्यिक स्रोत : Bharteey sanskriti ke adhyayan srot

साहित्यिक स्रोतों को यदि विभाजित किया जाय तो इसे 2 भागों में पुनः बांटा जा सकता है-

i. स्वदेशी साहित्य या भारतीय साहित्य

ii. विदेशी यात्रियों के साहित्य (ग्रंथ) 

i. भारतीय साहित्यिक स्रोत :

भारत का साहित्य जितना विशाल है उतना ही प्राचीन। हमारा ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है।

स्वदेशी साहित्य को पुनः विभाजित करें तो भारत में 2 प्रकार के साहित्य की रचना प्राचीन काल में हुई थी-

(क) धार्मिक साहित्य 

(ख) लौकिक / धर्मेत्तर साहित्य 

धार्मिक साहित्य :

धार्मिक साहित्य के अंतर्गत वे ग्रंथ आते हैं जो किसी धर्म विशेष से प्रभावित होते हैं। भारतीय धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण धर्म के वेद , ब्राह्मण ग्रंथ , आरण्यक , उपनिषद , स्मृतियां , पुराण , महाकाव्य आदि तथा बौद्ध धर्म के पिटक साहित्य (विनय पिटक , सुत्त पिटक , अभिधम्म पिटक) और जैन धर्म के आगम साहित्य व अन्य कई आते हैं। 

वेद (ऋग्वेद, सामवेद , यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) आदि हमें वैदिक युगीन संस्कृति के सामाजिक जीवन , रहन-सहन , धर्म-दर्शन , विचार , विज्ञान व कला आदि के बारे में बताते हैं। इसके अलावा हमें ब्राह्मण साहित्य , आरण्यकों व उपनिषदों आदि से उत्तर वैदिक कालीन तथा अन्य परवर्ती संस्कृतियों के बारे में भी समुचित जानकारी प्राप्त होती हैं।

वहीं बात करें यदि 18 पुराणों की तो इनसे अलग अलग समय की सांस्कृतिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है जो इसके विकास को दर्शाती है।

बौद्ध ग्रंथों की यदि बात करें तो इनसे हमें छठी सदी ई०पू० के बाद की भारतीय संस्कृति का विवरण मिलता है क्योंकि बौद्ध धर्म की स्थापना ही छठी सदी ई०पू० में हुई थी। बौद्ध ग्रंथों में विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक तथा इनके अनेकों शाखाएं भारतीय संस्कृति के अध्ययन हेतु उपयोगी हैं। इनसे हमें उस काल की संस्कृतियों की जानकारी मिलती है जिस काल में ये लिखे गए थे।

जैन ग्रंथों में आगम साहित्य विशेष उल्लेखनीय हैं। आगम साहित्य 12 अंग , 12 उपांग , 10 प्रकीर्ण तथा 6 छेदसूत्रों में बंटा हुआ है। इनसे भी हमें ततयुगीन भारतीय संस्कृति की जानकारी प्राप्त होती है।

लौकिक साहित्य / धर्मेत्तर साहित्य :

लौकिक साहित्य भी भारतीय संस्कृति की उद्वेचन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

जहां कौटलीय अर्थशास्त्र तथा मुद्राराक्षस मौर्यकालीन समस्त संस्कृतियों , रहन सहन , शासन प्रशासन , खान पान , ज्ञान विज्ञान , धर्म दर्शन आदि के विषय में जानकारी देते हैं वहीं गार्गी संहिता , पतंजलि का महाभाष्य तथा कालिदास के सभी ग्रंथ मौर्योत्तर काल की संस्कृतियों का उल्लेख करते हैं।

इसके अलावा हर्षचरित , राजतरंगिणी , नीतिसार , अष्टाध्यायी और मृच्छकटिकम आदि से भी हमें तत्कालीन संस्कृति के विभिन्न पक्षों का विवरण मिलता है।

विदेशी यात्रियों के विवरण :

जिस प्रकार विदेशी विवरण भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण हैं ठीक उसी प्रकार यह भारतीय संस्कृति के अध्ययन में बेहद उपयोगी हैं।

जहां हेरोडोटस भारत व ईरान के प्राचीन व्यापारिक संबंध की व्याख्या करता है वहीं पेरिप्लस से प्राचीन भारतीय समुद्री व्यापार पर प्रकाश पड़ता है।

मेगस्थनीज का विवरण (इण्डिका) भी मौर्य कालीन सभ्यता व संस्कृति को जानने के लिए मील का पत्थर साबित होता है।

इनके अलावा फाह्यान , ह्वेनसांग , इत्सिंग व तारानाथ जैसे आदि विद्वानों ने भी अलग अलग समय में न केवल भारत की यात्रा की बल्कि यहां काफी समय भी बिताए। इसी कारण उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में भारत की सामाजिक , धार्मिक व सांस्कृतिक दशा की झांकी प्रस्तुत होती है।

भारतीय संस्कृति के पुरातात्विक स्रोत :

भारतीय संस्कृति को जानने के लिए साहित्यिक स्रोतों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण साबित होते हैं। क्योंकि जिस समय से भारतीय संस्कृति रूपी उत्कृष्ट महल की नींव रखी गयी उस समय साहित्य शून्य अवस्था में था। ऐसी स्थिति में पुरातत्व ही हमें साहित्य के पूर्व की तथा साहित्य के साथ की संस्कृतियों की भी व्याख्या करते हैं।

पुरातत्व के अंतर्गत पुरावशेष , सिक्के , अभिलेख , भवन , स्मारक , मंदिर , मूर्तियां आदि आते हैं। इनके अवलोकन से  उस समय के रहन सहन , आवास , विचार , विश्वास , धर्म , दर्शन , कला , उपासना समेत अन्य सभी सांस्कृतिक व भौतिक पक्षों पर प्रकाश पड़ता है।

निष्कर्ष :

इस प्रकार यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति के अध्ययन हेतु साहित्यिक व पुरातात्विक दोनों स्रोत बेहद उपयोगी हैं। इन्ही स्रोतों के कारण हम भारत की गौरवशाली संस्कृति को एक महान संस्कृति साबित कर सके हैं जो दुनिया भर के लाखों करोड़ों लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती जा रही है। इन स्रोतों के भविष्य में अधिक स्पष्ट होने से, जैसे हड़प्पाई लिपि का पढ़ा जाना , हम भारतीय संस्कृति को और गहराई से और स्पष्टतया जान सकेंगे।

संबंधित लेख : अवश्य देखें 👇

● प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक स्रोत (साहित्यिक स्रोत)

● प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक स्रोत (विदेशी विवरण)

● प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक स्रोत (पुरातात्विक स्रोत)

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र० 
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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