इस्लाम क्या है ? Islam kya hai | What is islam in hindi | इस्लाम धर्म का इतिहास

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 आज के समय मे विश्व मे व्याप्त अनेकों धर्मों में इस्लाम का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। हम सभी जानते हैं कि इस्लाम धर्म का उदय मध्यकाल में (7वीं शताब्दी ई० में) अरब प्रायद्वीप के मक्का से हुआ था तथा इसके प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे। यह धर्म अल्लाह के द्वारा अंतिम पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा भेजी गई पवित्र पुस्तक ‘कुरान’ पर पूर्णतः आधारित है। इसमें हदीस, सीरत उन-नबी व शरीयत ग्रन्थ शामिल हैं।

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इस्लाम : एक एकेश्वरवादी धर्म 

अन्य धर्मों (हिन्दू , ईसाई , यहूदी , सिख  आदि) की भांति इस्लाम भी एक धर्म है। मूलतः यह एक एकेश्वरवादी धर्म है। एकेश्वरवाद का तात्पर्य यह है कि इसमें सिर्फ एक ही (ईश्वर/God) की उपासना की जाती है। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है ‘एक’। इस्लाम के अनुसार ‘अल्लाह एक है और हम सभी उसके बन्दे हैं।’ 

इस प्रकार इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है। इस्लाम को मानने वाले मुसलमान कहलाये।

एकेश्वरवाद क्या है ? 

एकेश्वरवाद अथवा एकदेववाद एक ऐसा सिद्धान्त है जो ‘ईश्वर एक है’ अथवा ‘एक ईश्वर है’ विचार को सर्वप्रमुख रूप में मान्यता देता है। दूसरे शब्दों में एकेश्वरवाद वह सिद्धांत है जो जिसके अनुसार ‘ईश्वर एक है’ माना जाता है। 

एकेश्वरवादी एक ही ईश्वर (God) को मानता है , उसी में पूर्ण विश्वास करता है तथा केवल उसी की पूजा-उपासना करता है। 

इसके साथ ही वह किसी भी ऐसी अन्य अलौकिक शक्ति या देवता को नहीं मानता जो उस ईश्वर का समकक्ष हो सके अथवा उसका स्थान ले सके। इसी दृष्टि से बहुदेववाद, एकदेववाद का विलोम सिद्धान्त कहा जाता है।

अल्लाह की प्रमुखता :

इस्लाम में सिर्फ एक ही ईश्वर को प्रमुखता दी गयी है जिन्हें ‘अल्लाह‘ कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि अल्लाह अद्वितीय है जिनकी न कल्पना की जा सकती है , न ही समझा जा सकता है , न ही उनके प्रतिबिंब की कल्पना की जा सकती है इसीलिए इस्लाम धर्म में मूर्तियों का कोई स्थान नहीं है और न ही अल्लाह की कोई मूर्ति या चित्र मिलते हैं। 

 इस प्रकार अल्लाह मनुष्यों की समझ से परे है , वह एक अद्भुत और विलक्षण है , उसके समान कोई दूसरा न हुआ है न अब है और न ही कभी हो सकता है। 

इसीलिए मुसलमानों को अल्लाह के बारे में सोचने के बजाय उनकी उपासना , प्रार्थना और जय-जयकार करने के लिए कहा गया है। 

इस्लाम धर्म के संस्थापक : (Founder of Islam)

इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर मोहम्मद साहब थे। मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईसवी में अरब प्रायद्वीप के मक्का नामक नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला तथा माता का नाम अमीना था। वह कुरैशी कबीला से संबंधित थे। 

बचपन में ही उनके माता पिता की मृत्यु हो गई जिससे उनका पालन पोषण उनके चाचा अबू तालिब ने किया । अनाथ होने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन सुख सुविधाओं से वंचित रहा अर्थात प्रारंभिक जीवन का कष्ट दुखों से भरा रहा तथा निर्धनता में बीता। 

अभी प्रारंभ में बकरियां ऊंट चराया करते थे किंतु समय के साथ धीरे-धीरे अपने चाचा के साथ व्यापार करना भी प्रारंभ कर दिए थे। व्यापार में ही उनका संपर्क खदीजा नामक महिला से हुआ जो एक विधवा थी किंतु आर्थिक रूप से बेहद संपन्न और धनवान थी। मोहम्मद साहब ने उससे विवाह कर लिया तथा एक समृद्ध सौदागर बन गए और लौकिक सुख सुविधाओं की सारी वस्तुएं उन्हें सुलभ हो गयी। 

किंतु वे लौकिक सुख सुविधाओं की अपेक्षा धार्मिक चिंतन की ओर प्रवृत्त हुए । मक्का के समीप हीरा की पहाड़ी में गुफा में बैठकर भी ध्यान लगाते थे । ध्यान करते हुए मोहम्मद को एक बार जिब्राइल के माध्यम से अल्लाह का पैगाम मिला कि वह सत्य का प्रचार करें। अब वे पैगम्बर के रूप में विख्यात हुए और इस्लाम धर्म की स्थापना की। 

इसके बाद मुहम्मद साहब ने शक्ति द्वारा इस्लाम का प्रचार करना आरंभ किया। 

गिबन के अनुसार , “उन्होंने एक हाथ मे तलवार तथा दूसरे में कुरान ग्रहण करके ईसाई तथा रोमन साम्राज्य के ऊपर अपना राज सिंहासन स्थापित किया।”

632 ई० में उनकी मृत्यु तक वे इसका प्रचार करते रहे। तथा उनकी मृत्यु के बाद इस्लाम के प्रचार की जिम्मेदारी  खलीफाओं ने सम्हाली।

खलीफा क्या है ? : 

मुहम्मद साहब ने अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं चुना था अतः अरब के लोगों ने इस्लाम के प्रचार के लिए एक खलीफा पद बनाया और इसके लिए सबसे पहके अबू वक्र को चुना। अतः पैगम्बर मुहम्मद के उत्तराधिकारी ही खलीफा कहलाये।

 

प्रारंभिक खलीफा: 1. अबू वक्र
                           2. उमर
                           3. उसमान
                           4. अली

इस्लाम का विभाजन :

अधिकांश मुसलमान यह मानते है कि खलीफा का पद मुहम्मद साहब के परिवार और बिना परिवार से संबंधित दोनों व्यक्ति पा सकते हैं। उन्होंने उपरोक्त चारों खलीफाओं को एक मत से स्वीकार किया।

किन्तु कुछ प्रतिशत मुसलमानों का यह मानना था कि खलीफा सिर्फ मुहम्मद साहब के परिवार से संबंधित ही हो सकते हैं। उनका मानना था कि खलीफा (जिसे वह ईमाम भी कहते थे) स्वयँ भगवान के द्वारा आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाता है। इनके अनुसार अली पहले ईमाम थे। 

इस प्रकार जो उपरोक्त चारों को खलीफा मानने वाले अधिकांश मुसलमान थे वे सुन्नी मुसलमान कहलाये कहलाये और जो आंशिक मुसलमान ये मानते थे कि पहले खलीफा अली हैं, क्योंकि वे पैगम्बर मुहम्मद के परिवार से सम्बंधित थे, वे शिया मुसलमान कहलाये। 

वर्तमान में इस्लाम इसी 2 शाखाओं में विभाजित रूप में विश्व भर में व्याप्त है। इनके मध्य परस्पर संघर्ष और बैर भाव हमेशा से ही रहा है। 

शिया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य 680 ई० में खलीफा पद प्राप्त करने के लिए एक युद्ध हुआ जिसे कर्बला का युद्ध कहा जाता है। जिस दिन यह युद्ध हुआ इस्लामी कैलेंडर (हिज़री संवत) के अनुसार उसी दिन सुन्नी मुसलमान एक त्योहार मानते हैं जो मुहर्रम के नाम से विख्यात है। 

प्रारंभ से अभी तक लगभग 40 वर्षों तक खलीफा का पद अरब में ही रहा किन्तु अली के बाद कर्बला का युद्ध हुआ जिसके परिणामस्वरूप खिलाफत का पद सीरिया की राजधानी दमिश्क में चला गया। 

कर्बला का युद्ध : 

सुन्नियों के अनुसार चौथे और शियाओं के अनुसार पहले खलीफा अली के बाद उसका पुत्र हुसैन खलीफा बना। इसी बीच सीरिया के एक शासक खलीफा पद प्राप्त करना चाहता था। 

उसने शिया मुसलमानों के जरिये संदेश भेजा कि वह अली के पुत्र हुसैन से मिलना चाहता है। 

हुसैन अपनी एक छोटी सी सेना के साथ उससे मिलने के लिए गया। किन्तु सीरिया के शासक ने वहां पूर्णतः युद्ध की तैयारी किये हुए था। और दोनों के बीच एक भीषण युद्ध हुआ जिसे ‘कर्बला का युद्ध’ कहा जाता है। यह युद्ध 680 ई० में लड़ा गया था। 

इस युद्ध मे बगदाद के शासक ने धोके से हुसैन की हत्या कर दी।

जैसे ही हुसैन की हत्या का समाचार सुन्नियों को मिला वे शियाओं पर भड़क उठे और उनके प्रति आक्रामक हो गए। सुन्नियों का कहना था कि ‘अगर शिया मुसलमान हुसैन को वहां न भेजते तो हुसैन की हत्या न होती , इसमें निश्चित ही शियाओं का हाथ था।’

किन्तु शियाओं का कहना था कि हुसैन की हत्या के पीछे शियाओं का कोई हाथ नहीं है तथा हुसैन ही हत्या का हमें भी दुख है। इसलिए शिया मुसलमान भी मुहर्रम का शोकपूर्ण त्योहार मनाते हैं। 

मुहर्रम क्यों मनाया जाता है ?

इसी युद्ध में हुसैन व उसकी सेना के निर्मम नरसंहार के कारण सुन्नी मुसलमान एक शोक का त्योहार “मुहर्रम” मानते हैं। बाद में शिया मुसलमान भी इसे मनाने लगे।

अगला लेख : 

● इस्लाम के 5 सिद्धांत (विस्तारपूर्वक) 

Note : उपरोक्त article (लेख) विद्यार्थियों के लिए है इसका किसी भी धर्म विशेष की पारंपरिक मान्यताओं से कोई संबंध नहीं है। 

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धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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