इस्लाम धर्म के सिद्धांत | Islam dharm ke siddhant | इस्लाम के 5 स्तंभ | 5 pillers of islam

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पिछली पोस्ट में हमने जाना कि : इस्लाम क्या है ? 

यहां हम इस्लाम के सिद्धांतों के बारे में आसानी से समझने का प्रयास करेंगे। आप पूरे लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें। तथा इस लेख को पढ़ने के बाद या पहले आप पिछली पोस्ट अवश्य पढ़ लें। 

हम जानते हैं कि इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है। इसमें एक ईश्वर के रूप में अल्लाह को माना गया है। इस्लामी परंपरा में ऐसा माना जाता है कि अल्लाह संसार मे सर्वशक्तिमान व सबसे सभी क्षेत्रों में अत्यधिक श्रेष्ठ है। 

गौरतलब है कि इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर मुहम्मद साहब थे। उनका जन्म 570 ई० के लगभग अरब प्रायद्वीप में मक्का नगर में हुआ था। परंपरा के अनुसार अल्लाह समय समय पर अपने पैगम्बर भेजता रहता है इनमें मुहम्मद साहब अंतिम पैगम्बर थे। 

इस्लाम धर्म : 

इस्लाम धर्म के 5 सिद्धांत

हम जानते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा दिये गए उपदेशों तथा उनकी शिक्षाओं के सम्मिलित रूप को ही इस्लाम की संज्ञा प्रदान की गयी है। यह वर्तमान समय में व्यापक रूप धारण कर चुका है। इस्लाम मत कट्टरवाद और एकेश्वरवाद में विश्वास करता है। 

एकेश्वरवाद क्या है ?

इस्लामी मान्यता के अनुसार सृष्टि का एकमात्र देवता ‘अल्लाह‘ है । यह सर्वशक्तिमान , सबसे सुंदर , सबसे व्यापक , सर्वज्ञ एवं असीम करुणावान है। उसके अतिरिक्त संसार मे कोई दूसरी शक्ति नहीं है। सभी अल्लाह की संतान हैं लिहाज़ा सभी व्यक्ति जो इस्लाम स्वीकार कर चुके हैं आपस में सगे भाई-बहन हैं। 

पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद बीतते समय के साथ साथ  खिलाफत में उठापटक के साथ साथ इस्लाम 2 पंथों (शिया व सुन्नी) में विभाजित हो गया। इन दोनों शाखाओं में हमेशा से मतभेद और टकराव की स्थिति रही है। सुन्नी पंथ के बहुसंख्यक मुसलमान शियाओं को पूर्ण मुसलमान नहीं मानते हैं। फलस्वरूप ऊपरी सिद्धांतों में भी दोनों पंथ एकमत नहीं हैं। 

सिद्धान्तों में अंतर के बावजूद दोनों पंथ के मूलभूत सिद्धान्त समान हैं जिनका उपदेश/शिक्षा मुहम्मद साहब ने दिया था। 

इस्लाम धर्म के 5 सिद्धांत : 

इस्लामी मान्यताओं और विश्वासों के अनुसार इस्लाम के 5 मूल स्तंभ हैं। जिन्हें मुसलमानों के 5 फ़र्ज़ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये 5 वो परम आवश्यक कर्म हैं जो हर मुसलमान को अपने जीवनकाल में निष्ठापूर्वक अवश्य पूर्ण करने चाहिए। 

इन सिद्धांतों का वर्णन इस्लाम के प्रसिद्ध हदीस ‘हदीस-ए-जिब्रील’ में है। 

ये निम्नलिखित हैं–

1. नमाज़

2. रोज़ा 

3. कलमा

4. ज़कात

5. हज़

इस्लाम के 5 स्तंभ :

आईये विस्तारपूर्वक जानते हैं–

1. नमाज़ :

 इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मुसलमान को प्रतिदिन 5 बार नमाज़ अदा करनी चाहिए। तथा शुक्रवार (जिसे जुमा कहा जाता है) को दोपहर के बाद सभी मुसलमानों को सामूहिक रूप से मस्जिद में इकट्ठे होकर नमाज पढ़ना चाहिए।  

5 बार की नमाजों का समय – 

प्रत्येक मुसलमान के लिए प्रति दिन पाँच समय की नमाज पढ़ने का विधान है।

i. नमाज़ -ए-फ़ज्र (उषाकाल की नमाज)-यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।

ii. नमाज-ए-ज़ुहर (अवनतिकाल की नमाज)- यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरु करने के बाद पढ़ी जाती है।

iii. नमाज -ए-अस्र (दिवसावसान की नमाज)- यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।

iv. नमाज-ए-मग़रिब (सायंकाल की नमाज)- चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।

v. नमाज-ए-ईशा (रात्रि की नमाज)- अंतिम पाँचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।

Note : इस्लाम धर्म में यह सबसे बड़ा फ़र्ज़ (कर्तव्य) है। अगर कोई मुसलमान इसको नहीं करता तो यह सबसे बड़ा पाप है । वहीं अगर कोई मुसलमान इस फ़र्ज़ को शिद्दत से निभाता है तो यह उसके लिए सबसे पुण्य का कार्य है। 

2. रोज़ा : 

इस्लामी मत के सिद्धांतों में रोज़ा रखना एक महत्वपूर्ण फ़र्ज़ है। 

इस के अनुसार इस्लामी कैलेंडर के नवें महीने में (जिसे रमज़ान कहा जाता है) सभी सक्षम मुसलमानों के लिये सूर्योदय  से सूर्यास्त  तक व्रत रखना (भूखा प्यासा रहना)अनिवार्य है। इसी व्रत को रोज़ा कहते हैं। रोज़े में हर प्रकार का खाना-पीना वर्जित (मना) है। अन्य व्यर्थ कर्मों से भी अपने आप को दूर रखा जाता है। यौन गतिविधियाँ भी वर्जित हैं। विवशता में रोज़ा रखना आवश्यक नहीं होता। रोज़ा रखने के कई उद्देश्य हैं जिन में से दो प्रमुख उद्देश्य यह हैं कि दुनिया के बाकी आकर्षणों से ध्यान हटा कर ईश्वर से निकटता अनुभव की जाए और दूसरा यह कि निर्धनों, भिखारियों और भूखों की समस्याओं और परेशानियों का ज्ञान हो।

रमजान मास को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते हैं रमजान का महीना कभी २९ दिन का तो कभी ३० दिन का होता है। इस महीने में सभी मुसलमानों को पूरे महीने सुबह से शाम तक का उपवास रखना चाहिए।

Note : सहरी : उपवास के दिन सूर्योदय से पहले कुछ खालेते हैं जिसे सहरी कहते हैं।

इफ़्तारी : दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्त होने के बाद रोज़ा खोल कर खाते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं।

3. कलमा : 

इस्लाम का तीसरा सिध्दांत या फ़र्ज़ कलमा के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार प्रत्येक मुसलमान को अल्लाह पर पूर्ण निष्ठा और विश्वास रखना चाहिए। कलमा इस्लाम का मूल मंत्र है। 

“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुन रसूलुल्लाह।”

अर्थात : परमेश्वर के सिवा कोई भी परमेश्वर नहीं है, मुहम्मद उस ईश्वर के प्रेषित हैं। 

4. ज़कात : 

जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक प्रमुख है। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मुसलमान को अपनी आय का 1/40 वां भाग (2.5 %) गरीबों में दान करना चाहिए और उनके कल्याण की कामना करना चाहिए। 

यह एक वार्षिक दान है। जो कि हर आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान को निर्धन मुसलमानों को देना आवश्यक है। यह एक धार्मिक कर्तव्य इस लिये है क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी वास्तव में ईश्वर की देन है। और दान देने से जान और माल कि सुरक्षा होती हे।

5. हज़ : 

हज़ इस्लाम के 5 सिद्धांतों में एक बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह हर शरीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों को अपने जीवनकाल में एक बार अवश्य करना चाहिए। 

हज उस धार्मिक तीर्थ यात्रा का नाम है जो इस्लामी कैलेण्डर के 12वें महीने में मक्का में जाकर की जाती है। हर समर्पित मुसलमान (जो हज का खर्च‍‍ उठा सकता हो और विवश न हो) के लिये जीवन में एक बार इसे करना अनिवार्य है। 

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निष्कर्ष :

इस प्रकार ये उपरोक्त 5 सिद्धान्तों का प्रतिपादन इस्लामी पवित्र ग्रंथों में किया गया है। इसे मुसलमानों के 5 फ़र्ज़ भी कहते हैं।

हज़रत मुहम्मद ने भ्रातृत्व के सिद्धान्त का प्रचार किया। वे सभी मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के एक समान समझते थे। उन्होंने नैतिकता एवं मानव जाति की सेवा पर बल दिया और मूर्ति पूजा का जोरदार शब्दों में खण्डन किया। वे कर्म सिद्धान्त को भी मानते थे। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही उसके भविष्य का जीवन निर्धारित होता है और उसे ‘जन्नत’ (स्वर्ग) अथवा ‘दोज़ख’ (नर्क) की प्राप्ति होती है। 

इस्लाम केवल एक अल्लाह में विश्वास रखता है। इस प्रकार एकेश्वरवाद इस्लाम का मूल मन्त्र है। इस्लाम के मानने वालों को अल्लाह के रसूल या पैगम्बर में ही अटूट विश्वास रखना चाहिए। मुसलमानों का पवित्र ग्रन्थ या पुस्तक कुरान है। मुसलमानों को इस पुस्तक की शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए।

Note : यह article (लेख) विद्यार्थियों के लिए है इसका किसी भी धर्म विशेष की पारंपरिक मान्यताओं से कोई संबंध नहीं है।  

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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